श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – 5



Shri Kedarnath Jyotirling

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र से श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥7॥

अर्थ: –
जो महागिरि हिमालयके पास केदारशृंगके तटपर
सदा निवास करते हुए मुनीश्वरोंद्वारा पूजित होते हैं
तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,
उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथका मैं स्तवन करता हूँ॥7॥


हिमालय में स्थित श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

बारह ज्योतिर्लिंग

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

यह ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है।

पुराणों एवं शास्त्रों में श्री केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन बारंबार किया गया है।

यहां की प्राकृतिक शोभा देखते ही बनती है।

शिखर के पश्चिम भाग में
मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित श्री केदारनाथ का मंदिर है और
शिखर के पूर्व में
अलकनंदा के तट पर श्री बद्रीनाथ का परम प्रसिद्ध मंदिर है।

अलकनंदा और मंदाकिनी- ये दोनों नदियाँ
नीचे रुद्रप्रयाग में आकर मिल जाती हैं।

दोनों नदियों की यह संयुक्त धारा और नीचे
देवप्रयाग में आकर भागीरथी गंगा से मिल जाती हैं।

इस प्रकार परम पावन गंगाजी में स्नान करने वालों को भी
श्री केदारेश्वर और बद्रीनाथ के चरणों को धोने वाले जल का स्पर्श
सुलभ हो जाता है।

इस अतीव पवित्र पुण्यफलदायी ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में पुराणों में यह कथा वर्णित है –


श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा

अनंत रत्नों के जनक, अतिशय पवित्र,
तपस्वियों, ऋषियों, सिद्धों,
देवताओं की निवास-भूमि
पर्वतराज हिमालय के
केदार नामक अत्यंत शोभाशाली श्रृंग पर
महातपस्वी श्रीनर और नारायण ने
बहुत वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए
बड़ी कठिन तपस्या की।

कई हजार वर्षों तक वे निराहार रहकर
एक पैर पर खड़े होकर शिव नाम का जप करते रहे।

इस तपस्या से
सारे लोकों में उनकी चर्चा होने लगी।

देवता, ऋषि-मुनि, यक्ष, गन्धर्व
सभी उनकी साधना और संयम की प्रशंसा करने लगे।

चराचर के पितामह ब्रह्माजी और
सबका पालन-पोषण करने वाले भगवान विष्णु भी
महापस्वी नर-नारायण के तप की प्रशंसा करने लगे,
अंत में भगवान शंकरजी भी उनकी उस कठिन साधना से प्रसन्न हो उठे।

उन्होंने प्रत्यक्ष प्रकट होकर
उन दोनों ऋषियों को दर्शन दिए।

नर और नारायण ने भगवान्‌ भोलेनाथ के दर्शन से भाव-विह्वल और
आनंद-विभोर होकर बहुत प्रकार की पवित्र स्तुतियों और
मंत्रो से उनकी पूजा-अर्चना की।

भगवान्‌ शिवजी ने अत्यंत प्रसन्न होकर
उनसे वर मांगने को कहा।

भगवान्‌ शिव की यह बात सुनकर
दोनों ऋषियों ने उनसे कहा,

“देवाधिदेव महादेव!
यदि आप हम पर प्रसन्न हैं
तो भक्तों के कल्याण हेतु आप सदा-सर्वदा के लिए
अपने स्वरूप को यहां स्थापित करने की कृपा करें।

आपके यहां निवास करने से
यह स्थान सभी प्रकार से अत्यंत पवित्र हो उठेगा।

यहां आपका दर्शन-पूजन करने वाले मनष्यों को
आपकी अविनाशिनी भक्ति प्राप्त हुआ करेगी।

प्रभो! आप मनुष्यों के कल्याण और
उनके उद्धार के लिए अपने स्वरूप को
यहां स्थापित करने की हमारी प्रार्थना अवश्य ही स्वीकार करें।”

उनकी प्रार्थना सुनकर
भगवान्‌ शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में
वहां वास करना स्वीकार किया।

केदार नामक हिमालय-श्रृंग पर स्थित होने के कारण
इस ज्योतिर्लिंग को श्री केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।

भगवान्‌ शिव से वर मांगते हुए नर और नारायण ने
इस ज्योतिर्लिंग और इस पवित्र स्थान के विषय में जो कुछ कहा है,
वह अक्षरशः सत्य है।

इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन
तथा यहां स्नान करने से
भक्तों को लौकिक फलों की प्राप्ति होने के साथ-साथ
अचल शिवभक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है।


शिवपुराण में केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगके आविर्भावकी कथा तथा उनके माहात्म्यका वर्णन – शिवपुराण से

बारह ज्योतिर्लिंग

Shiv Stotra Aarti List

शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता खंड के अध्याय 19 से 21 में श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा दी गयी है।

सूतजी कहते हैं –

ब्राह्मणो! भगवान् विष्णुके जो नर-नारायण नामक दो अवतार हैं और भारतवर्षके बदरिकाश्रमतीर्थमें तपस्या करते हैं, उन दोनोंने पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसमें स्थित हो पूजा ग्रहण करनेके लिये भगवान् शम्भुसे प्रार्थना की।

शिवजी भक्तोंके अधीन होनेके कारण प्रतिदिन उनके बनाये हुए पार्थिवलिंगमें पूजित होनेके लिये आया करते थे।

जब उन दोनोंके पार्थिव-पूजन करते बहुत दिन बीत गये, तब एक समय परमेश्वर शिवने प्रसन्न होकर कहा – “मैं तुम्हारी आराधनासे बहुत संतुष्ट हूँ।

तुम दोनों मुझसे वर माँगो।” उस समय उनके ऐसा कहनेपर नर और नारायणने लोगोंके हितकी कामनासे कहा – “देवेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं और यदि मुझे वर देना चाहते हैं तो अपने स्वरूपसे पूजा ग्रहण करनेके लिये यहीं स्थित हो जाइये।” उन दोनों बन्धुओंके इस प्रकार अनुरोध करनेपर कल्याणकारी महेश्वर हिमालयके उस केदारतीर्थमें स्वयं ज्योतिर्लिंगके रूपमें स्थित हो गये।

उन दोनोंसे पूजित होकर सम्पूर्ण दुःख और भयका नाश करनेवाले शम्भु लोगोंका उपकार करने और भक्तोंको दर्शन देनेके लिये स्वयं केदारेश्वरके नामसे प्रसिद्ध हो वहाँ रहते हैं।

वे दर्शन और पूजन करनेवाले भक्तोंको सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करते हैं।

उसी दिनसे लेकर जिसने भी भक्तिभावसे केदारेश्वरका पूजन किया, उसके लिये स्वप्नमें भी दुःख दुर्लभ हो गया।

जो भगवान् शिवका प्रिय भक्त वहाँ शिवलिंगके निकट शिवके रूपसे अंकित वलय (कंकण या कड़ा) चढ़ाता है, वह उस वलययुक्त स्वरूपका दर्शन करके समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है, साथ ही जीवन्मुक्त भी हो जाता है।

जो बदरीवनकी यात्रा करता है, उसे भी जीवन्मुक्ति प्राप्त होती है।

नर और नारायणके तथा केदारेश्वर शिवके रूपका दर्शन करके मनुष्य मोक्षका भागी होता है, इसमें संशय नहीं है।

केदारेश्वरमें भक्ति रखनेवाले जो पुरुष वहाँकी यात्रा आरम्भ करके उनके पासतक पहुँचनेके पहले मार्गमें ही मर जाते हैं, वे भी मोक्ष पा जाते हैं – इसमें विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है।* केदारतीर्थमें पहुँचकर वहाँ प्रेमपूर्वक केदारेश्वरकी पूजा करके वहाँका जल पी लेनेके पश्चात् मनुष्यका फिर जन्म नहीं होता।

ब्राह्मणो! इस भारतवर्षमें सम्पूर्ण जीवोंको भक्तिभावसे भगवान् नर-नारायणकी तथा केदारेश्वर शम्भुकी पूजा करनी चाहिये।


बारह ज्योतिर्लिंग की कथाएं



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