Somnath Jyotirlinga – 1
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र से श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं
सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥
जय सोमनाथ, जय सोमनाथ॥
अर्थ –
जो अपनी भक्ति प्रदान करनेके लिये
अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में
दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तकका आभूषण है,
उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप भगवान् श्रीसोमनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥1॥
गुजरात में स्थित श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग
गुजरात प्रांत के
काठियावाड़ क्षेत्र में
समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर में
यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
पहले यह क्षेत्र
प्रभासक्षेत्र के नाम से जाना जाता था।
शंकरजी के बारह ज्योतिर्लिंग में से
सोमनाथ को आद्य ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
यह स्वयंभू देवस्थान होने के कारण और
हमेशा जागृत होने के कारण
लाखों भक्तगण यहाँ आकर पवित्र-पावन हो जाते है।
यहीं भगवान् श्रीकृष्ण ने
जरा नामक व्याध के बाण को
निमित्त बनाकर अपनी लीला का संवरण किया था।
यहां के ज्योतिर्लिंग की कथा का
पुराणों में इस प्रकार से वर्णन है –
श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा
चन्द्रमा और दक्ष प्रजापति
दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं।
उन सभी का विवाह
चंद्रदेव के साथ हुआ था।
किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम
उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था।
उनके इस कृत्य से
दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं
बहुत अप्रसन्न रहती थीं।
उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा
अपने पिता को सुनाई।
दक्ष प्रजापति ने इसके लिए
चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया।
किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर
इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें
क्षयग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया।
इस शाप के कारण
चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए।
उनके क्षयग्रस्त होते ही
पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का
उनका सारा कार्य रूक गया।
चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।
चंद्रमा भी बहुत दु:खी और चिंतित थे।
चन्द्रमा की भगवान् शिव आराधना और तपस्या
उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता
तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण
उनके उद्धार के लिए
पितामह ब्रह्माजी के पास गए।
सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा –
“चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए
अन्य देवों के साथ
पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाकर
मृत्युंजय भगवान् शिव की आराधना करें।
उनकी कृपा से अवश्य ही
इनका शाप नष्ट हो जाएगा और
ये रोगमुक्त हो जाएंगे।”
उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने
मृत्युंजय भगवान् की आराधना का
सारा कार्य पूरा किया।
उन्होंने घोर तपस्या करते हुए
दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया।
शिवजी का चन्द्रमा को वरदान
इससे प्रसन्न होकर
मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें
अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा –
“चंद्रदेव! तुम शोक न करो।
मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही,
साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।
कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी
एक-एक कला क्षीण होगी,
किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में
उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला
बढ़ जाया करेगी।
इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को
तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।”
चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से
सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे।
सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में
सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत् करने लगे।
शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने
अन्य देवताओं के साथ मिलकर
मृत्युंजय भगवान् से प्रार्थना की
कि आप माता पार्वतीजी के साथ
सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहां निवास करें।
चन्द्रमा अर्थात सोम की भगवान् शंकर से प्रार्थना
भगवान् शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके
ज्योतर्लिंग के रूप में
माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहां रहने लगे।
पावन प्रभासक्षेत्र में स्थित
इस सोमनाथ – ज्योतिर्लिंग की महिमा
महाभारत, श्रीमद्भागवत
तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बताई गई है।
चंद्रमा का एक नाम सोम भी है,
उन्होंने भगवान् शिव को ही
अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी।
अतः इस ज्योतिर्लिंग को
सोमनाथ कहा जाता है |
इसके दर्शन, पूजन, आराधना से
भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और
दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं।
वे भगवान् शिव और माता पार्वती की
अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं।
मोक्ष का मार्ग उनके लिए
सहज ही सुलभ हो जाता है।
उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य
स्वयमेव सफल हो जाते हैं।
शिवपुराण में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथके प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा – शिवपुराण से
शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता खंड के अध्याय 8 से 14 में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा दी गयी है –
कपिला नगरीके कालेश्वर, रामेश्वर आदिकी महिमा बताते हुए सूतजीने समुद्रके तटपर स्थित गोकर्णक्षेत्रके शिवलिंगोंकी महिमाका वर्णन किया।
फिर महाबल नामक शिवलिंगका अद्भुत माहात्म्य सुनाकर अन्य बहुत-से शिवलिंगोंकी विचित्र माहात्म्य-कथाका वर्णन करनेके पश्चात् ऋषियोंके पूछनेपर वे ज्योतिर्लिंगोंका वर्णन करने लगे।
सूतजी बोले – ब्राह्मणो! मैंने सद्गुरुसे जो कुछ सुना है, वह ज्योतिर्लिंगोंका माहात्म्य तथा उनके प्राकट्यका प्रसंग अपनी बुद्धिके अनुसार संक्षेपसे ही सुनाऊँगा।
तुम सब लोग सुनो।
मुने! ज्योतिर्लिंगोंमें सबसे पहले सोमनाथका नाम आता है; अतः पहले उन्हींके माहात्म्यको सावधान होकर सुनो।
मुनीश्वरो! महामना प्रजापति दक्षने अपनी अश्विनी आदि सत्ताईस कन्याओंका विवाह चन्द्रमाके साथ किया था।
चन्द्रमाको स्वामीके रूपमें पाकर वे दक्षकन्याएँ विशेष शोभा पाने लगीं तथा चन्द्रमा भी उन्हें पत्नीके रूपमें पाकर निरन्तर सुशोभित होने लगे।
उन सब पत्नियोंमें भी जो रोहिणी नामकी पत्नी थी, एकमात्र वही चन्द्रमाको जितनी प्रिय थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापि प्रिय नहीं हुई।
इससे दूसरी स्त्रियोंको बड़ा दुःख हुआ।
वे सब अपने पिताकी शरणमें गयीं।
वहाँ जाकर उन्होंने जो भी दुःख था, उसे पिताको निवेदन किया।
द्विजो! वह सब सुनकर दक्ष भी दुःखी हो गये और चन्द्रमाके पास आकर शान्तिपूर्वक बोले।
दक्षने कहा – कलानिधे! तुम निर्मल कुलमें उत्पन्न हुए हो।
तुम्हारे आश्रयमें रहनेवाली जितनी स्त्रियाँ हैं, उन सबके प्रति तुम्हारे मनमें न्यूनाधिकभाव क्यों है? तुम किसीको अधिक और किसीको कम प्यार क्यों करते हो? अबतक जो किया, सो किया, अब आगे फिर कभी ऐसा विषमतापूर्ण बर्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिये; क्योंकि उसे नरक देनेवाला बताया गया है।
सूतजी कहते हैं – महर्षियो! अपने दामाद चन्द्रमासे स्वयं ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष घरको चले गये।
उन्हें पूर्ण निश्चय हो गया था कि अब फिर आगे ऐसा नहीं होगा।
पर चन्द्रमाने प्रबल भावीसे विवश होकर उनकी बात नहीं मानी।
वे रोहिणीमें इतने आसक्त हो गये थे कि दूसरी किसी पत्नीका कभी आदर नहीं करते थे।
इस बातको सुनकर दक्ष दुःखी हो फिर स्वयं आकर चन्द्रमाको उत्तम नीतिसे समझाने तथा न्यायोचित बर्तावके लिये प्रार्थना करने लगे।
दक्ष बोले – चन्द्रमा! सुनो, मैं पहले अनेक बार तुमसे प्रार्थना कर चुका हूँ।
फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी।
इसलिये आज शाप देता हूँ कि तुम्हें क्षयका रोग हो जाय।
सूतजी कहते हैं – दक्षके इतना कहते ही क्षणभरमें चन्द्रमा क्षयरोगसे ग्रस्त हो गये।
उनके क्षीण होते ही उस समय सब ओर महान् हाहाकार मच गया।
सब देवता और ऋषि कहने लगे कि ‘हाय! हाय! अब क्या करना चाहिये, चन्द्रमा कैसे ठीक होंगे?’ मुने! इस प्रकार दुःखमें पड़कर वे सब लोग विह्वल हो गये।
चन्द्रमाने इन्द्र आदि सब देवताओं तथा ऋषियोंको अपनी अवस्था सूचित की।
तब इन्द्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषि ब्रह्माजीकी शरणमें गये।
उनकी बात सुनकर ब्रह्माजीने कहा – देवताओ! जो हुआ, सो हुआ।
अब वह निश्चय ही पलट नहीं सकता।
अतः उसके निवारणके लिये मैं तुम्हें एक उत्तम उपाय बताता हूँ।
आदरपूर्वक सुनो।
चन्द्रमा देवताओंके साथ प्रभास नामक शुभ क्षेत्रमें जायँ और वहाँ मृत्युंजयमन्त्रका विधिपूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान् शिवकी आराधना करें।
अपने सामने शिवलिंगकी स्थापना करके वहाँ चन्द्रदेव नित्य तपस्या करें।
इससे प्रसन्न होकर शिव उन्हें क्षयरहित कर देंगे।
तब देवताओं तथा ऋषियोंके कहनेसे ब्रह्माजीकी आज्ञाके अनुसार चन्द्रमाने वहाँ छः महीनेतक निरन्तर तपस्या की, मृत्युंजय-मन्त्रसे भगवान् वृषभध्वजका पूजन किया।
दस करोड़ मन्त्रका जप और मृत्युंजयका ध्यान करते हुए चन्द्रमा वहाँ स्थिरचित्त होकर लगातार खड़े रहे।
उन्हें तपस्या करते देख भक्तवत्सल भगवान् शंकर प्रसन्न हो उनके सामने प्रकट हो गये और अपने भक्त चन्द्रमासे बोले।
शंकरजीने कहा – चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो; तुम्हारे मनमें जो अभीष्ट हो, वह वर माँगो! मैं प्रसन्न हूँ।
तुम्हें सम्पूर्ण उत्तम वर प्रदान करूँगा।
चन्द्रमा बोले – देवेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं तो मेरे लिये क्या असाध्य हो सकता है; तथापि प्रभो! शंकर! आप मेरे शरीरके इस क्षयरोगका निवारण कीजिये।
मुझसे जो अपराध बन गया हो, उसे क्षमा कीजिये।
शिवजीने कहा – चन्द्रदेव! एक पक्षमें प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण हो और दूसरे पक्षमें फिर वह निरन्तर बढ़ती रहे।
तदनन्तर चन्द्रमाने भक्तिभावसे भगवान् शंकरकी स्तुति की।
इससे पहले निराकार होते हुए भी वे भगवान् शिव फिर साकार हो गये।
देवताओंपर प्रसन्न हो उस क्षेत्रके माहात्म्यको बढ़ाने तथा चन्द्रमाके यशका विस्तार करनेके लिये भगवान् शंकर उन्हींके नामपर वहाँ सोमेश्वर कहलाये और सोमनाथके नामसे तीनों लोकोंमें विख्यात हए।
ब्राह्मणो! सोमनाथका पूजन करनेसे वे उपासकके क्षय तथा कोढ़ आदि रोगोंका नाश कर देते हैं।
ये चन्द्रमा धन्य हैं, कृतकृत्य हैं, जिनके नामसे तीनों लोकोंके स्वामी साक्षात् भगवान् शंकर भूतलको पवित्र करते हुए प्रभासक्षेत्रमें विद्यमान हैं।
वहीं सम्पूर्ण देवताओंने सोमकुण्डकी भी स्थापना की है, जिसमें शिव और ब्रह्माका सदा निवास माना जाता है।
चन्द्रकुण्ड इस भूतलपर पापनाशन तीर्थके रूपमें प्रसिद्ध है।
जो मनुष्य उसमें स्नान करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
क्षय आदि जो असाध्य रोग होते हैं, वे सब उस कुण्डमें छः मासतक स्नान करनेमात्रसे नष्ट हो जाते हैं।
मनुष्य जिस फलके उद्देश्यसे इस उत्तम तीर्थका सेवन करता है, उस फलको सर्वथा प्राप्त कर लेता है – इसमें संशय नहीं है।
चन्द्रमा नीरोग होकर अपना पुराना कार्य सँभालने लगे।
इस प्रकार मैंने सोमनाथकी उत्पत्तिका सारा प्रसंग सुना दिया।
मुनीश्वरो! इस तरह सोमेश्वरलिंगका प्रादुर्भाव हुआ है।
जो मनुष्य सोमनाथके प्रादुर्भावकी इस कथाको सुनता अथवा दूसरोंको सुनाता है, वह सम्पूर्ण अभीष्टको पाता और सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
बारह ज्योतिर्लिंग की कथाएं
- बारह ज्योतिर्लिंग – स्तोत्र, कथा, मंदिर की लिस्ट
- श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग – 1
- श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – 2
- श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – 3
- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – 4
- श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – 5
- श्री भीमांशंकर ज्योतिर्लिंग – 6
- श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – 7
- श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग – 8
- श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग – 9
- श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – 10
- श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग- 11
- श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग – 12
Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan
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- श्री बद्रीनाथजी की आरती – बद्रीनाथ स्तुति
- शिव चालीसा - Shiv Chalisa
- शिव अमृतवाणी – शिव अमृत की पावन धारा
- श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग – 1
- श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – 3
- श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – 5
- काली कमली वाला, मेरा यार है
- मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी
- बोलो बोलो सब मिल बोलो, ओम नमः शिवाय
- Bolo Bolo Sab Mil Bolo Om Namah Shivaya
- Aao Mahima Gaye Bhole Nath Ki
- आओ महिमा गाए भोले नाथ की
- Hey Shambhu Baba Mere Bhole Nath
- हे शम्भू बाबा मेरे भोले नाथ
- Subah Subah Le Shiv Ka Naam
- Satyam Shivam Sundaram Lyrics
List
- गीता के अनुसार मनुष्य का भविष्य कैसे बनता है?
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय लिस्ट
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय – 01
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय – 02
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय – 03