बालकाण्ड – सत्पुरुष और दुष्टजनों में क्या फर्क है?



बालकाण्ड के पिछले लेख में हमने देखा की
तुलसीदासजी ना सिर्फ सत्पुरुषों को प्रणाम करते है,
बल्कि, खल लोगोंको अर्थात दुष्टजनों को भी प्रणाम करते है।

<<<< तुलसीदासजी दुष्टजनों को भी क्यों प्रणाम करते है?

अब आगे, तुसलदाजी सत्पुरुषों में
और खल लोगों में क्या फर्क है यह बताते है।


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मैं सत्पुरुष और खल दोनोंके चरणोंको प्रणाम करता हूं.
यद्यपि वे दोनों दुखदायी हैं
परंतु उन दोनोंके बीचमें कुछ फर्क है ॥ ३ ॥


एक यानी सत्पुरुष तो बिछुरनेके समय प्राण लेते हैं और
एक यानी खल मिलनेके समय महादारुण दुःख देते हैं ॥ ४ ॥


यद्यपि कमल और जोंक (पानी का कीड़ा जो प्राणियों का रक्त चूसता है, लीच)
दोनों जलमें एक साथ पैदा होते हैं
पर जैसे उनके गुण अलग अलग हैं
वैसेही सत्पुरुष और खलोंके गुण अलग अलग हैं ॥ ५ ॥


यद्यपि अमृत और मदिराका पिता अगाध समुद्र एकही है
तथापि जगत्में उनके गुण अलग अलग हैं,
ऐसेही साधु और असाधुमें फर्क है.
साधु अमृतके समान हैं और असाधु मदिराके तुल्य हैं ॥ ६ ॥


यद्यपि भले और बुरे
दोनों अपनी अपनी करतूतिसे एकही साथ पैदा हुए हैं
तथापि जो भले हैं वे तौ सुयशकी विभूतिको प्राप्त होते हैं और
जो बुरे हैं वे अपयशकी विभूतिको प्राप्त होते हैं ॥ ७ ॥


अमृत, चन्द्रमा, गंगा और साधु ये तो गुणरूप हैं और
विष, अग्नि, कर्मनाशा नदी, और व्याध (शिकारी) ये अवगुणरूप हैं ॥ ८ ॥
सो गुण, अवगुणको सबकोई जानते हैं।
परंतु उनमेंसे जो अच्छा लगता है, उसके लिये वोही अच्छा है ॥ ९ ॥


जो भला है वह भलाई करके ही शोभा पाता है और
जो नीच है वह बुराईसे ही शोभा पाता है.

देखो, अमृत तो अमर करनेसे सराहा जाता है
और जहर तत्काल मारनेसे सराहा जाता है ॥ ६ ॥


खललोगोंने तो समुद्रकी नाई अघ और अवगुण ग्रहण किये हैं और
साधुपुरुषोंने समुद्रवत् दया आदि शुभगुण धारण किये हैं,

इससे ये दोनों गुण और अवगुणके अथाह अपार समुद्र हैं ॥ १ ॥

और इसीसे मैंने कुछ गुण दोष बतलाये हैं,
क्योंकि, पहिचाने विना
गुण दोषका त्याग और संग्रह नहीं हो सकता ॥ २ ॥


भले और बुरे सब विधाताने पैदा किये हैं और
उनके गुण दोषका निश्चय करके,
वेदने उनको अलग २ किया है ॥ ३ ॥

यह बात वेद, पुराण और इतिहास सब कहते हैं कि विधाताका सब प्रपंच
गुण अवगुणसे मिला हुआ है ॥ ४ ॥


जैसे सुख और दुःख, पुण्य और पाप, रात और दिन,
साधु और असाधु, सुजाति और कुजाति ॥ ५ ॥

देवता और दानव, ऊंच और नीच,
अमृत और जहर, संजीविनी और मृत्यु ॥ ६ ॥

माया और ब्रह्म, जीव और परमेश्वर,
लक्ष्य और अलक्ष्य, दरिद्री और राजा, ॥ ७ ॥

काशी और मगधदेश, गंगा और कर्मनाशा,
मरुदेश ( मारवाड़ ) और मालवादेश, ब्राह्मण और चांडाल ॥ ८ ॥

स्वर्ग और नरक, प्रीति और वैराग्य,

यह गुणदोषका विभाग
वेद और शास्त्रोंने अच्छी तरह दिखाया है,
जिससे सब लोग जानते हैं ॥ ९ ॥


यद्यपि विधाताने यह जड़ चेतनरूप जगत् गुणदोषमय बनाया है
तथापि संतलोग तो
जैसे हंस जलको छोड़ कर दूधही ग्रहण करते हैं
ऐसे दोषको तज कर गुणही ग्रहण करते हैं ॥ ७ ॥

जब विधाता कृपाकर ऐसा विवेक देगा
तब दोषोंको तज कर मन गुणोंमें आसक्त हो जायगा ॥ १ ॥

कदाचित् काल, कर्म और स्वभावके प्रभाव से,
भले आदमी भी प्रकृतिवश होकर चूक जाते हैं ॥ २ ॥

तो हरिभगवान्के भक्त उस भूलको सुधार लेते हैं और
उनके दोष व दुःखको टाल- कर उनको अतिउज्वल यश देते हैं.

जैसे कि हरिभगवान् अपने भक्तलोगोकी भूलोंको
सदाकालसे सुधारते आये हैं
और उनको यश देते आये हैं.
अथवा उस भूलको वे लोग अपने आप सुधार लेते हैं

जैसे हरिभक्तलोग अपनी भूलको अपने आप सुधार लेते हैं और
फिर दोष व दुःखोको टाल कर विमल यश पाते है ॥ ३ ॥


जो धूर्तशिरोमणि सुन्दर वेष बनाये दीख पड़ते हैं,
वेभी उस वेषके प्रभावसे पूजे जाते हैं ॥ ५ ॥

पर आखिर वह कपट उघर ही जाता है,
अंततक नहीं निबह सकता.


जैसे- कालनेमि, राहु और रावण.
यद्यपि इन्होंने छलसे साधुका वेष बना लिया था
पर अंतको निर्बाह नहीं हुआ,
तुरंतही कपट खुल गया.

हनुमानजी संजीविनी लेने गये
तब कालनेमि ने हनुमान्को छलनेके लिये सन्यासीका रूप धारण किया था,
पर हनुमानजीने उसके कपटको जान लिया इसीसे उसे मारडाला.

राहु अमृतपान करनेके लिये
देवताओंकासा वेष बनाकर
सूर्यचंद्र के बीचमें जा बैठा था,

जब अमृत पीने लगा तब सूर्यचंद्रके इशारा करनेसे
प्रभुने सुदर्शनचक्रसे उसका शिर उड़ा दिया.

रावणने सीताहरणके समय पंचवटीमें सन्यासीका रूप धारण किया था,
आखिर उसको अपना राक्षसरूप धारण करना पड़ा ॥ ६॥

साधु पुरुष चाहे कुवेष बनाये रहें तोभी उनका तो जगत्में सन्मान ही होता है,
जैसे जाम्बवान् और हनुमान् ॥ ७ ॥

लोक और वेदमें भी यही बात है और सब लोगभी जानते हैं कि,
कुसंगति करनेसे हानि होती है और सत्संगति करनेसे लाभ होता है ॥ ८ ॥

देखिये जब रज ( धूलि ) पवनकी संगति करती है
तब तो वह ऊपर आकाशमे चढ़ जाती है और
जब नीचे बहनेवाले जलकी संगति करती है,
तब कीचड़ में मिल जाती है ॥ ९ ॥

तोता और सारिका भी साधुके घरमें रहते हैं
तो रामनामका स्मरण करते हैं और
असाधुके घरमें रहते हैं तो गालियां देते हैं.

संगतिसे पक्षियोंकी भी प्रकृति बदल जाती है ॥१०॥